कैवल्यधाम में सांस्कृतिक समरसता पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन
योग की परिवर्तनकारी शक्ति पर गहन चर्चाएँ
दिल्ली: योग अनुसंधान और शिक्षा के अग्रणी संस्थान कैवल्यधाम ने अपने शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में 5 अक्टूबर 2024 को लोनावाला, महाराष्ट्र स्थित अपने परिसर में एक भव्य राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। यह संस्थान, जिसे 1924 में स्वामी कुवलयानंद द्वारा स्थापित किया गया था, योग और आधुनिक विज्ञान के समन्वय से विश्व कल्याण में निरंतर योगदान दे रहा है। इस सम्मेलन में समग्र कल्याण और सांस्कृतिक एकता बढ़ाने में योग की भूमिका पर गहन चर्चा की गई।
समग्र कल्याण और सांस्कृतिक एकता में योग की भूमिका
सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य योग के माध्यम से मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करना और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देना था। इसमें योग के मन, शरीर और श्वास के बीच संबंध और इसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले लाभों पर गहन चर्चाएँ की गईं। साथ ही, सांस्कृतिक विभाजनों को दूर करने और महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों के समाधान में योग के योगदान पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।
सम्मेलन में उपस्थित विशिष्ट अतिथि
इस आयोजन में कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों ने हिस्सा लिया, जिनमें शामिल थे:
- न्यायमूर्ति भूषण आर. गवई, जज, भारत का सर्वोच्च न्यायालय
- न्यायमूर्ति रमेश धनुका, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, बॉम्बे उच्च न्यायालय
- श्री वैद्य राजेश कोटेचा, सचिव, आयुष
- न्यायमूर्ति डॉ. एस. राधाकृष्णन, पूर्व न्यायाधीश, बॉम्बे उच्च न्यायालय
- वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय, श्री संतोष पॉल
- प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी, पूर्व कुलपति, बीएचयू
- लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) ए.के. सिंह (सेवानिवृत्त)
- प्रोफेसर गोपालकृष्ण जोशी, कुलपति, एमआईटीवीपीयू, सोलापुर
न्यायमूर्ति भूषण आर. गवई का उद्घाटन संबोधन
न्यायमूर्ति भूषण आर. गवई ने अपने उद्घाटन संबोधन में योग की परिवर्तनकारी शक्ति पर जोर दिया। उन्होंने योग को “मन, शरीर और आत्मा का समन्वय” बताते हुए कहा कि योग सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक समरसता का एक शक्तिशाली साधन है। उन्होंने न्यायिक क्षेत्र में भी योग के महत्व को रेखांकित किया, जहां यह व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों प्रकार के कल्याण को बढ़ावा देने का माध्यम है।
अन्य गणमान्य व्यक्तियों के विचार
न्यायमूर्ति रमेश धनुका और न्यायमूर्ति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने योग के व्यक्तिगत और सामाजिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों पर चर्चा की। सुबोध तिवारी ने कैवल्यधाम की सामाजिक परिवर्तन में योग की भूमिका को उजागर करने के मिशन के बारे में बताया।
वहीं, वैद्य राजेश कोटेचा ने योग के वैश्विक प्रभाव पर चर्चा करते हुए इसे व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक एकता का एक महत्वपूर्ण साधन बताया। लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) ए.के. सिंह (सेवानिवृत्त) ने कहा, “योग विश्व को भारत का सबसे बड़ा योगदान है। यह हर धर्म और विचारधारा के लोगों को एक साथ जोड़ता है और सामूहिक कल्याण को बढ़ावा देता है।” प्रो. गोपालकृष्ण जोशी ने आधुनिक शिक्षा में योग को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
दो महत्वपूर्ण पुस्तकों का विमोचन
इस सम्मेलन के दौरान दो महत्वपूर्ण पुस्तकों का विमोचन भी किया गया:
- “प्राणायाम, मुद्रा और ध्यान” (लेखक: डॉ. एस. डी. भालेकर)
- “सात्विक आहार” (लेखिका: डॉ. ऋतु प्रसाद)
इन पुस्तकों में प्राचीन प्राणायाम, मुद्रा और ध्यान की विधियों का विस्तृत मार्गदर्शन दिया गया है। अब ये पुस्तिकाएं कोरियन भाषा में भी उपलब्ध हैं। “सात्विक आहार” पुस्तक योग में आहार के संतुलन और इसके महत्व को उजागर करती है। इन पुस्तकों का उद्देश्य योग की गहन परंपराओं को वैश्विक स्तर पर फैलाना और खासकर कोरियन बोलने वाले अभ्यासियों तक पहुंचाना है।
योग के वैश्विक प्रभाव पर चर्चा
सम्मेलन के समापन सत्र में योग के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में योगदान पर चर्चा की गई, साथ ही सामाजिक समस्याओं के समाधान में योग की भूमिका को भी रेखांकित किया गया। 190 से अधिक देशों में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है, जो योग की वैश्विक मान्यता और सांस्कृतिक विभाजनों को समाप्त करने की इसकी क्षमता को दर्शाता है।
कैवल्यधाम के शताब्दी समारोह के आगामी कार्यक्रम
कैवल्यधाम के शताब्दी समारोह के अगले कार्यक्रम का आयोजन 18-19 अक्टूबर 2024 को किया जाएगा, जिसमें योग के आध्यात्मिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इसके बारे में अधिक जानकारी और अपडेट के लिए विजिट करें: कैवल्यधाम राष्ट्रीय सम्मेलन.